शिव चालीसा(Shiv Chalisa) पढ़कर आप अपने सारे दुखों को भूल सकते हैं और शिव की अनंत कृपा पा सकते हैं। शिव पुराण कहता है कि परमात्मा शिव-शक्ति का मिलन है। शिव चालीसा (Shiv Chalisa) की पराशक्ति चित् शक्ति से दिखाई देती है। चित् शक्ति से इच्छाशक्ति निकलती है, और आनंद शक्ति से इच्छाशक्ति निकलती है। हर दिन भगवान भोलेनाथ की शिव चालीसा पढ़ने का अपना अलग महत्व है। 

शिव चालीसा का पाठ करने के कई लाभ माने जाते हैं। यहाँ कुछ मुख्य लाभों की एक सूची है:

  1. भगवान शिव की कृपा: शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का पाठ करके भगवान शिव की कृपा की प्राप्ति होती है। उन्हें हिंदू धर्म में परम देवता माना जाता है और वे नाश, परिवर्तन, और शुभता के गुणों से जुड़े हैं।
  2. बुराई से सुरक्षा: शिव चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं, शैतानी आत्माओं, और अनुकूल शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। भगवान शिव को बुराई का नाशक और भक्तों का संरक्षक माना जाता है।
  3. बाधाओं का निवारण: शिव चालीसा का पाठ करने से भाग्य और चुनौतियों को पार किया जा सकता है। भगवान शिव को विघ्नहर्ता के रूप में भी जाना जाता है।
  4. आत्मिक विकास: शिव चालीसा (Shiv Chalisa) के भक्तिपूर्वक पाठ से भक्तों का आत्मिक संबंध भगवान शिव के साथ गहरा होता है, जिससे उन्हें आंतरिक शांति, ज्ञान, और आत्मिक विकास मिलता है।
  5. स्वास्थ्य और समृद्धि: शिव चालीसा का जाप करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य मिलता है। भगवान शिव को आरोग्य और ऊर्जा के स्रोत के रूप में जाना जाता है।
  6. इच्छाओं की पूर्ति: शिव चालीसा का ईमानदारी से पाठ करने से भक्तों की इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। भगवान शिव को वरदानवाले के रूप में माना जाता है।
  7. मन और आत्मा का शुद्धिकरण: शिव चालीसा (Shiva Chalisa) का नियमित पाठ करने से व्यक्ति का मन, शरीर, और आत्मा शुद्ध होता है। यह हिंदू धर्म में आत्मिक शुद्धि और आंतरिक शुद्धि के लिए एक शक्तिशाली उपाय है।
  8. कल्याण और श्रद्धा: शिव चालीसा (Shiva Chalisa)का पाठ भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धांजलि का एक तरीका है।
  9. शांति और ध्यान: शिव चालीसा का ध्वनि मन को शांति, ध्यान, और शांति की भावना प्रदान करता है।
  10. भगवानी संरक्षा: भगवान शिव की कृपा के द्वारा शिव चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को दिव्य संरक्षा प्राप्त होती है।

शिव चालीसा

शिव चालीसा(Shiv Chalisa)

||दोहा||

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

चौपाई

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

|| दोहा ||

बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।

गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार

तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।

तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय

दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।

कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥

कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।

राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥

।। इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।।

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