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MEA द्वारा ट्रंप के $21 मिलियन चुनावी फंडिंग दावे की जांच शुरू

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए दावे को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने कहा था कि बाइडेन प्रशासन ने भारत में 2024 के चुनावों के दौरान मतदाता भागीदारी को प्रभावित करने के लिए $21 मिलियन की मंजूरी दी थी। इस दावे की सच्चाई का पता लगाने के लिए MEA ने आधिकारिक जांच शुरू कर दी है।


ट्रंप का आरोप और MEA की प्रतिक्रिया

डोनाल्ड ट्रंप ने मियामी में एक शिखर सम्मेलन के दौरान दावा किया कि भारत में लोगों को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने पर $21 मिलियन खर्च करने का कोई तर्क नहीं बनता है। उनका मानना था कि यह खर्च चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश हो सकती है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, MEA के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने कहा कि ये रिपोर्टें “गंभीर रूप से चिंताजनक” हैं और संबंधित विभागों द्वारा पूरी तरह जांच किए जाने के बाद ही कोई सार्वजनिक बयान दिया जाएगा।


गलत आवंटन, गलत दिशा या गलतफहमी?

हालांकि, प्रारंभिक जांच से पता चला है कि इस दावे में कई खामियां हैं।

  • आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, $21 मिलियन की मंजूरी भारत के लिए नहीं, बल्कि बांग्लादेश के युवाओं की नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए 2022 में दी गई थी।
  • यह एक पायलट प्रोजेक्ट था, जिसका उद्देश्य जनवरी 2024 में होने वाले बांग्लादेश चुनावों से पहले युवाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल करना था।
  • इस परियोजना को “अमर वोट अमार” (मेरा वोट मेरा) कार्यक्रम के तहत लागू किया गया था, जिसमें रद्द होने से पहले ही $13.4 मिलियन खर्च किए जा चुके थे।

इसके अलावा, USAID (यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) के रिकॉर्ड से पता चलता है कि अमेरिकी संघ (Consortium for Elections and Political Process Strengthening – CEPPS) ने 2008 के बाद से भारत में कोई चुनावी परियोजना नहीं चलाई है।

इस स्थिति से सवाल उठता है कि क्या ट्रंप ने गलत तरीके से इस फंडिंग को भारत से जोड़ा, या वे वास्तव में गलतफहमी का शिकार हुए?


भारत में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

ट्रंप के दावे ने भारत में राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है।

  • भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने चुनाव प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप की संभावना को लेकर चिंता जताई है।
  • BJP नेता अमित मालवीय ने कहा, “अगर यह फंडिंग सच है, तो इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि अन्य संगठनों को इस तरह की कितनी फंडिंग मिल रही है और कौन इसे नियंत्रित कर रहा है।”

दूसरी ओर, विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इस आरोप को पूरी तरह “बेबुनियाद” बताते हुए खारिज कर दिया।

  • कांग्रेस ने तर्क दिया कि ऐसी बाहरी फंडिंग से भारतीय चुनावों पर कोई असर नहीं हो सकता।
  • उन्होंने सरकार से “श्वेत पत्र” (White Paper) जारी करने की मांग की, जिसमें भारत में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलने वाले USAID समर्थन का पूरा ब्योरा दिया जाए।

चुनाव आयोग की स्पष्टीकरण

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने भी इस मामले पर अपना बयान दिया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत के चुनाव आयोग ने 2012 में इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) के साथ एक समझौता किया था, लेकिन इसमें कोई वित्तीय सहायता शामिल नहीं थी।

उन्होंने कहा कि इस दावे को लेकर किसी भी प्रकार की गलतफहमी को दूर करने की जरूरत है, ताकि विदेशी फंडिंग से भारतीय चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ने के दावे को पूरी तरह से नकारा जा सके।


FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

Q: क्या अमेरिका भारत में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए $21 मिलियन खर्च कर रहा है?

A: नहीं, आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह धनराशि बांग्लादेश में युवाओं की नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए आवंटित की गई थी, न कि भारत के लिए।

Q: क्या USAID ने हाल ही में भारत में कोई चुनावी परियोजना चलाई है?

A: नहीं, USAID के रिकॉर्ड के अनुसार, CEPPS ने 2008 के बाद से भारत में कोई भी चुनाव-संबंधी परियोजना नहीं चलाई है।

Q: MEA का इस मुद्दे पर क्या कहना है?

A: MEA ने इसे “गंभीर रूप से चिंताजनक” बताया है और इस पूरे मामले की गहन जांच कर रही है।

Q: भारतीय राजनीतिक दलों की क्या प्रतिक्रिया रही?

A:

  • BJP ने इसे “विदेशी हस्तक्षेप” करार दिया और जांच की मांग की।
  • कांग्रेस ने इस आरोप को “निराधार” बताते हुए सरकार से USAID की सभी फंडिंग का पूरा विवरण सार्वजनिक करने की मांग की।

निष्कर्ष

इस मामले में सच्चाई क्या है, इसका पता जांच पूरी होने के बाद ही चलेगा। हालांकि, यह मुद्दा भारत की चुनावी पारदर्शिता और बाहरी प्रभाव के संभावित खतरों पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दे चुका है।

चुनावों की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए सटीक तथ्यों की पुष्टि बेहद आवश्यक है। इसलिए, पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे सटीक और विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करें और इस मुद्दे पर चर्चा करें, ताकि लोकतंत्र और पारदर्शिता को बढ़ावा मिल सके।


नोट: यह लेख 21 फरवरी, 2025 तक उपलब्ध जानकारी के आधार पर लिखा गया है। समय के साथ नई जानकारियां सामने आ सकती हैं।

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